صلح حدیبیہ

صلح حدیبیہ اور ابو جندل اور ابو بصیر کا قصّہ

صلح حدیبیہ :حضور اقدس صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم عمرے کے ارادہ سے مکہ تشریف لے جار ہے تھے۔ کفار مکہ کواس کی خبر ہوئی اوروہ اس خبر کو اپنی ذلت سمجھے. اس لئے مزاحمت کی اور حدیبیہ (صلح حدیبیہ)  میں آپ کو رکنا پڑا۔ جاں نثار صحابہ ساتھ تھے جو حضور اکرم صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم پر جان قربان کرنا فخر سمجھتے تھے۔ لڑنے کو تیار ہوگئے۔

مگر حضور صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم  نے مکہ والوں کی خاطر سے لڑنے کا ارادہ نہیں فرمایا اورصلح کی کوشش کی اور باوجودصحابہ کی لڑاتی پرمستعدی اور بہادری کے حضور اکرم صلی اللہ علیہ والہ وسلم نے کفّار کی اس قدر رعایت فرمائی کہ ان کی ہر شرط کوقبول فرمالیا.

صحابہ کو اس طرح دب کر صلح کرنا بہت ہی ناگوار تھا. مگر اپ صلی الہ علیہ والہ وسلم کے ارشاد کے سامنے کیا ہوسکتا تھاکہ جاں نصر اور فرمانبردار تے اس لئے حضرت عمر جیسے بہادروں کو بھی دبنا پڑا. اصل میں جو شرطیں طے ہوتیں ان شرطوں میں یہ شرط بھی تھی کہ کافروں میں سے جو شخص اسلام لایا اور ہجرت کرے تو مسلمان اس کو مکہ واپس کر دیں اور مسلمانوں میں سے خدا نخواستہ اگر کوئی شخص مرتد ہوکر چلا آئے تو وہ واپس نہ کیا جائے.

یہ صلح نامہ ابھی تک پورا لکھا بھی نہیں گیا تھا کہ حضرت ابو جندل ایک صحابی تھے جو اسلام لانے کی وجہ سے طرح طرح کی تکلیفیں برداشت کر رہے تھے اور زنجیروں میں بندھے ہوتے تھے۔ اسی حالت میں گرتے پڑتے مسلمانوں کے لشکر میں اس امید پر پہنچے کہ لوگوں کی حمایت میں جاکر اس مصیبت سے چھٹکارا پاؤں گا۔

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صلح حدیبیہ

اُن کے باپ سہیل نے جو اس صلح نامہ میں کفار کی طرف سے وکیل تھے اور اس وقت تک مسلمان نہیں ہوتے تھے. فتح مکہ میں مسلمان ہوئے ۔ انہوں نے صاحبزادے کے طمانچے مارے اور واپس لے جانے پر اصرار کیا. حضور اقدس صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم  نے ارشاد فرمایا کہ ابھی صلنامہ مرتب بھی نہیں ہوا اس لئے ابھی پابندی کس بات کی مگر انہوں نے اصرار کیاپھر حضوراقدس صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم نے فرمایا کہ ایک آدمی مجھے مانگا ہی دے دو مگر وہ لوگ ضد پر تھے نہ مانین.

ابو جندل نے مسلمانوں کو پکار کر فریاد بھی کی کہ مسلمان ہوکر آیا اور کتنی مصیبتیں اٹھای اور اب واپس کیا جارہا ہوں ، اس وقت مسلمانوں کے دلوں پر جو گزر رہی ہوگی اللہ ہی کو معلوم ہے. مگر حضور اقدس صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم کے ارشاد سے واپس ہوئے.حضوراقدس صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم نے تسلی فرمائی اور صبر کرنے کا حکم دیا، اور فرمایا عنقریب حق تعالیٰ ، شانہ تمھارے لئے راستہ نکالیں گے.

صلحنامہ کے مکمل ہوجانے کے بعد ایک دوسرے صحابی ابو بصیر بھی مسلمان ہوکر مدینہ منورہ پہنچے ۔ کفار نے اُن کو واپس بلانے کے لئے دو آدمی بھیجے. حضور اقدس صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم نے حسب وعدہ واپس فرما دیا. ابو بصیر نے عرض بھی کیا کہ یا رسول الله میں مسلمان ہو کر آیا، آپ مجھے کفار کے پنجہ میں پھر بھجتے ہیں۔ آپ نے ان سے بھی صبر کرنے کو ارشاد فر مایا اور فرمایا کہ انشا اللہ عنقریب تمھارے واسطے راستہ کھلے گا۔

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صلح حدیبیہ

یہ صحابی ان دونوں کافروں کے ساتھ واپس ہوئے۔ راستہ میں ان میں سے ایک سے کہنے لگے کہ یار تیری یہ تلوار تو بہت نفیس معلوم ہوتی ہے۔ شیخی باز آدمی ذراسی بات میں پھول ہی جاتا ہے وہ نیام سے تلوار نکال کر کہنے لگا کہ ہاں میں نے بہت سے لوگوں پراس کا تجربہ کیا. یہ کہ کر تلوار ان کے حوالہ کردیں انہوں نے اپنی پر اس کا تجربہ کیا۔ دوسرا ساتھی یہ دیکھ کر کہ ایک کو تو نمٹا دیا اب میرا نمبر ہے بھاگا ہوا مدینہ آیا اور حضور اکرم صلی اللہ و سلم کی خدمت میں حاضر ہو کر عرض کیا کہ میرا ساتھی مرچکا ہے اب میرا نمبر ہے۔

اس کے بعد ابو بصیر پہنچے اور عرض کیا کہ یا رسول اللہ آپ اپنا وعدہ پورا فرما چکے کہ مجھے واپس کر دیا اور مجھ سے کوئی عہد ان لوگوں کا نہیں ہے. جس کی ذمہ داری ہو. وہ مجھے میرے دین سے ہٹاتے ہیں. اس لئے میں نے یہ کیا حضور نے فرمایاکہ لڑائی بھڑ کانے والا ہے کاش کوئی اس کا متعین مدادگار ہوتا۔ وہ اس کلام سے سمجھ گئے کہ اب بھی اگر کوئی میری طلب میں آئے گا تو میں واپس کر دیا جاؤں گا۔ اس لئے وہ وہاں سے چل کر سمندر کے کنارے ایک جگہ آپڑے.

مکہ والوں کو اس قصہ کا حال معلوم ہوا تو ابو جندل بھی جن کا قصہ پہلے گذرا، چھپ کر وہیں پہنچ گئے۔ اسی طرح جو شخص مسلمان ہوتا وہ ان کے ساتھ جاملتا چند روز میں یہ ایک مختصر سی جماعت ہوگئی جنگل میں جہاں نہ کھانے کا کوئی انتظام نہ وہاں باغات اور آبادیاں، اس لئے ان لوگوں پر جو گزری ہوگی وہ تواللہ ہی کومعلوم ہے مگر جن ظالموں کے ظلم سے پریشان ہو کر یہ لوگ بھاگے تھے ان کا ناطقہ بند کر دیا۔

جو قافلہ ادھر کو جاتا اس سے مقابلہ کرتے اور لڑتے حتی کہ کفار مکہ نے پریشان ہو کر حضور کی خدمت میں عاجزی اور منت کرکے اللہ کا اور رشتہ داری کا واسطہ دے کر آدمی بھیجا کہ اس بے سری جماعت کو آپ اپنے پاس بلالیں کہ یہ معاہدہ میں تو داخل ہو جائیں اور ہمارے لئے آنے جانے کا راستہ کھلے. لکھا ہے کہ حضور اقدس صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم کا حکم نامہ جب ان حضرات کے پاس پہنچا تو ابو بصیر مرض الموت میں گرفتار تھے۔حضور کا حکم نامہ ہاتھ میں تھا کہ اسی حالت میں انتقال فرمایا رضی الہ.

 آدمی اگر اپنے دین پر پکا ہوں، بشرطیکہ دین بھی سچا ہو تو بڑی سے بڑی طاقت اس کو نہیں ہٹا سکتی اور مسلمان کی مددکا تو اللہ کا وعدہ ہے بشرطیکہ وہ مسلمان ہو۔

हुदैबियाह और अबू जिंदाल और अबू बसीर की कहानी

हुदायबिया की शांति: पवित्र पैगंबर (PBUH) उमरा के इरादे से मक्का का दौरा कर रहे थे। मक्का के काफ़िरों ने यह सुना और इस समाचार को अपना अपमान समझा। अतः आपने विरोध किया और आपको हुदैबियाह (हुदैबिया की शांति) पर रुकना पड़ा। जाँ निसार उन साथियों के साथ थे जो पवित्र पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद) के लिए अपने जीवन का बलिदान देने पर गर्व करते थे।लड़ने के लिए तैयार।

लेकिन पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मक्का के लोगों की खातिर लड़ने का इरादा नहीं किया और शांति बनाने की कोशिश की, और साथियों की दृढ़ता और बहादुरी के बावजूद, पवित्र पैगंबर (शांति और आशीर्वाद) अल्लाह तआला की ओर से) ने काफिरों को ऐसी रियायतें दीं कि उनकी सभी शर्तें पूरी हो गईं। स्वीकार किया गया।

साथियों को इस प्रकार दबाना और शांति स्थापित करना बहुत अप्रिय था। लेकिन नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इस बयान के सामने क्या हो सकता था कि वह नस्र और आज्ञाकारी थे। इसके कारण हजरत उमर जैसे वीरों का दमन करना पड़ा। मूल रूप से जो शर्तें निर्धारित की गई थीं, उनमें एक शर्त यह भी थी कि मुसलमानों को उस व्यक्ति को मक्का वापस लौटना होगा जो इस्लाम में परिवर्तित हो गया था और काफिरों के बीच से पलायन कर गया था, और भगवान की इच्छा से, यदि मुसलमानों में से कोई भी व्यक्ति धर्मत्यागी बन गया, तो वह वापस नहीं किया गया।

यह समझौता अभी पूरी तरह से लिखा भी नहीं गया था कि हजरत अबू जंदाल एक साथी थे जो इस्लाम लाने के कारण विभिन्न कष्ट झेल रहे थे और जंजीरों में बंधे हुए थे। ऐसी स्थिति में गिरते-पड़ते वह मुसलमानों की सेना के पास इस आशा से आये कि जनता के समर्थन में जाकर उन्हें इस मुसीबत से छुटकारा मिल जायेगा।

उनके पिता सोहेल, जो इस समझौते में काफिरों की ओर से वकील थे और उस समय तक मुस्लिम नहीं थे। फतह मक्का में मुसलमान बन गया। उसने बेटे को थप्पड़ मारा और उसे वापस ले जाने की जिद करने लगा। पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: “सलनामा अभी तक संकलित नहीं किया गया है, तो आपने अभी इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया, लेकिन उन्होंने जोर दिया?” वे जिद्दी थे और सहमत नहीं थे।

अबू जुंदाल ने मुसलमानों को पुकारते हुए कहा कि वह एक मुसलमान के रूप में आया था और उसने इतना कष्ट सहा और अब उसे वापस भेजा जा रहा है। उस समय मुसलमानों के दिल पर क्या बीत रही होगी, यह तो अल्लाह ही जानता है। लेकिन वह पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के शब्दों के साथ लौट आए।

शांति समझौता पूरा होने के बाद उनका दूसरा साथी अबू बसीर भी मुसलमान बन गया और मदीना पहुंच गया. अविश्वासियों ने उन्हें वापस बुलाने के लिए दो आदमी भेजे। पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने वादे के अनुसार इसे वापस कर दिया। अबू बसीर ने यह भी कहा, “हे अल्लाह के दूत, मैं मुसलमान बन गया हूं, आप मुझे काफिरों के चंगुल में वापस भेज दें।” उन्होंने उनसे धैर्य रखने को भी कहा और कहा कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही आपके लिए रास्ता खुल जाएगा।

ये साथी इन दोनों काफ़िरों को लेकर लौट आये। रास्ते में उन्होंने उनमें से एक से कहा, “मेरे दोस्त, तुम्हारी यह तलवार बहुत अत्याधुनिक लगती है।” घमंडी आदमी जरा-जरा सी बात पर फूल जाता है, उसने नियाम से अपनी तलवार निकाली और कहा कि हां, मैंने इसे कई लोगों पर आजमाया है। तलवार से उसे संदर्भित करने के लिए कहकर, उसने स्वयं पर इसका परीक्षण किया। दूसरा साथी, यह देखकर कि उनमें से एक मारा गया, अब उसका नंबर मेरा है, भाग गया और मदीना आ गया और पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सेवा में आया और कहा कि मेरे साथी की मौत हो गई है। मर गया और अब उसका नंबर मेरा है.

उसके बाद, अबू बसीर आए और कहा, “हे अल्लाह के दूत, आपने मुझे वापस करने का अपना वादा पूरा किया है, और इन लोगों ने मेरे साथ कोई वाचा नहीं रखी है।” इसकी जिम्मेदारी किसकी है. वे मुझे मेरे धर्म से भटकाते हैं। इसीलिए मैंने ऐसा किया। पवित्र पैगंबर ने कहा कि वह लड़ाई शुरू करने जा रहे हैं। काश कोई उनका नियुक्त सहायक होता। इस वचन से उन्हें समझ आ गया कि अब भी यदि कोई मुझे ढूंढ़ने आएगा, तो लौटा दिया जाऊंगा। इसलिए वह वहां से चला और समुद्र के किनारे एक जगह ढूंढी।

जब मक्का के लोगों को इस कहानी के बारे में पता चला, तो अबू जिंदाल, जिनकी कहानी पहले सुनाई गई थी, गुप्त रूप से वहां पहुंच गए। इसी प्रकार एक व्यक्ति जो मुसलमान था, उनके साथ यात्रा करता था। कुछ ही दिनों में जंगल में यह एक छोटा समूह बन गया, जहाँ भोजन की कोई व्यवस्था नहीं थी, कोई बाग-बगीचे और बस्तियाँ नहीं थीं। क्रूरता से परेशान होकर ये लोग भाग गए थे और अपनी बोलती बंद कर दी थी. वे इस ओर जाने वाले कारवां के साथ

लड़ते-झगड़ते रहते थे, यहाँ तक कि मक्का के अविश्वासियों को चिंता हुई और उन्होंने अपने आप को पवित्र पैगंबर की सेवा में समर्पित कर दिया और अल्लाह और रिश्तेदारी की मदद से एक आदमी को इस अनियंत्रित समूह को आपके पास बुलाने के लिए भेजा। एग्रीमेंट कर लो और हमारे आने-जाने का रास्ता खोल दो। लिखा है कि जब पैगम्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान इन सज्जनों तक पहुंचा, तो अबू बसीर मृत्यु की स्थिति में थे।

यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म पर दृढ़ है, बशर्ते कि वह धर्म भी सच्चा हो, तो कोई भी बड़ी ताकत उसे हटा नहीं सकती है, और एक मुसलमान की मदद अल्लाह का वादा है, बशर्ते कि वह मुसलमान हो।

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